गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

हरनावदा : आपका स्वागत है...

मेरे गाँव हरनावदा में आपका स्वागत है। ये गाँव यूं तो छोटा ही है, और यहाँ न कोई नदी है, न कोई पहाड़ है, न समुद्र है, न कोई बड़ा नेता यहाँ से निकला न कोई कोई बड़ी घटना यहाँ हुई। तब फिर हरनावदा में आपका स्वागत करने का प्रयास क्यों कर रहा हूँ। कोई तो ख़ास बात होगी मेरे हरनावदा में। वो ख़ास बात क्या है। यही तलाशना है।
यहाँ के लोग? यहाँ की गलियां? यहाँ की माटी? यहाँ के घर? यहाँ के पर्व त्यौहार? यहाँ के नाज नखरे? यहाँ के छोटे मोटे झगड़े? यहाँ की पुराणी नयी बातें? यहाँ की तरक्की? यहाँ का पिछड़ापन ? यहाँ की धार्मिक आस्थाएं? यहाँ की पढाई लिखायी ? यहाँ की खेत खलिहान की बातें? यहाँ की मशीनरी की बातें? यहाँ का टेलीफोन? यहाँ के मोबाइल? यहाँ का टी वी? ट्रक्टर? बैलगाड़ी? छकड़े? हल? बक्खर ? ..... कुंवे? खाल? यानी की नाला? बबूल? खजूर? आम? पीपल? कुण्डी? ..... कितनी कितनी चीजें है।
... क्या ऐसे में किसी गाँव के लिए जरूरी है की उसकी पहचान तब ही बने जब वहां से कोई नेता निकला हो? कोई बड़ी घटना हुई हो? कोई बड़ा पहाड़ हो? कोई नदी हो? सनुद्र हो? अरुंधती रॉय ने तो 'मामूली चीजों का देवता' लिखकर ही तो अपने सृजन को धार देकर दुनिया में पहचान बनायीं। फिर मेरे गाँव की अपनी पहचान 'मामूली चीजों' से क्यों नहीं हो सकती है। उसकी मामूली चीजें दुनिया के लिए मामूली चीजें हो सकती हैं, पर हरनावदा का विकास तो उन्ही से हुआ है। तो ये मामूली चीजें मेरे हरनावदा के लिए मामूली नही, 'ख़ास चीजें' है।
मेरे अग्रज और लन्दन में बसे चित्रकार वसंत चिंचवाडकर ने एक बार कहा था की मुझे कोई ऐसी वृत फिल्म बनान चाहिए जिसमे किसी भारतीय गाँव का रोज का जीवन हो। वो काम आज तक अधूरा है। ...... होगा वो काम भी होगा... पर तब तक शब्दों और चित्रों की मार्फ़त हरनावदा को अपनी 'मामूली' चीजें बताने से कैसे रोक सकता हूँ.... तो तब तक हाजिर है हरनावदा की कुछ चीजें.... पत्रकार सुरेंद्रप्रताप सिंह की तर्ज पर कहूं तो कुछ इस तरह की ' ये बातें थी आज तक... इन्तजार कीजिये अगले पोस्ट तक' । पर इस ब्लॉग पर आइयेगा जरूर......... इसी निवेदन, आमंत्रण, आग्रह के साथ ... आपका हरनावदा में स्वागत है....
-अमी चरण सिंह , १८ फरवरी, २०१०, सुबह इंदौर में।
(गाँव में जिंदगी की शुरुआत में मेरा नाम था चरणसिंह तोमर, फिर वो आज हो गया है अमी चरणसिंह।)